Daud
ये दौड़ हैं संसार की, ये दौड़ हैं इन्सान की
दौड़ रहा इस दौड़ में, जब से मै पैदा हुआ
माँ ने बोला मेरे लिए, तू तेज थोडा और दौड़
लोगो ने कहा क्या करेगा, ऐसे धीरे दौड़ के
मैं और तेज दौड़ा, मैं और तेज दौड़ा
दौड़ दौड़ मे ना जाने, कब बचपना निकल गया
बड़ा हुआ तो पैसो की, दौड़ में मैं पड़ गया
लटक रही तलवार, उमीदों की मेरे ऊपर
जीत लूगा इस दौड़ को मैं किसी भी हाल पर
यह सोच मैं दौड़ा, मैं और तेज दौड़ा
कभी मैं बीबी और, बच्चो के लिए दौड़ा
कभी उन आंसुओ को, मिटने के लिए दौड़ा
कभी उस गरीबी को, हटाने के लिए दौड़ा
यह सोच मैं भागता, भागता ही रहा
खड़ा हु उस मुकाम पर, राह ख़त्म होती दिख रही
सब दोस्त पीछे छुट गये, सब यार पीछे रह गये
जिनके लिए मैं दौड़ा, वो दुनिया से ही रूठ गये
अकेला खड़ा इस मोड़ में, सब छुट गया इस दौड़ में
अब लग रहा ये दौड़ हैं हैवान की शैतान की
समझ न आ रहा मुझे, क्यों मैं भागता रहा
यह सोच बाकी जिंदगी, मैं यू ही जागता जागता रहा
यह सोच बाकी जिंदगी, मैं यू ही जागता जागता रहा .....
by one of my friend siddhart.
No comments:
Post a Comment